ऐनी बेसेंट
थियोसोफिकल सोसाइटी और भारतीय
होम रूल आंदोलन
में अपनी विशिष्ट
भागीदारी निभाने
वाली ऐनी बेसेंट
का जन्म 1 अक्टूबर,
1847 को तत्कालीन यूनाइटेड किंगडम
ऑफ
ग्रेट
ब्रिटेन
एंड
आयरलैंड
के लंदन शहर में
हुआ था. आइरिश परिवार से संबंधित
ऐनी बेसेंट का
शुरूआती नाम ऐनी वुड्स
था. वह जब
पांच वर्ष की
थीं, तभी उनके
पिता का निधन
हो गया था.
परिवार के पालन-पोषण के
लिए ऐनी की
मां ने हैरो
स्कूल के नाम
से लड़कों के
लिए एक बोर्डिंग
स्कूल खोला था.
लेकिन फिर भी
वह ऐनी की
उचित देखभाल करने
में असमर्थ रहीं.
इसीलिए उन्होंने ऐनी को
अपनी एक दोस्त
को इस उम्मीद
से कि उनकी
दोस्त ऐनी बेसेंट
को उच्च शिक्षा
दे पाएगी, गोद
दे दिया. एलिन नामक उनकी
दोस्त ने ऐनी
को बहुत अच्छी
परवरिश दी. उन्हें
अपने कर्तव्यों और
उत्तरदायित्वों का ज्ञान
करवाया और एक
आत्मनिर्भर महिला बनने की
सीख दी. उन्नीस वर्ष की आयु
में ऐनी बेसेंट
का विवाह छब्बीस
वर्षीय पादरी ऐनी वुड्स
से हो गया
था. जल्द ही
ऐनी के पति
फ्रेंक लिंकनशायर स्थित सिबसी
के प्रतिनिधि बन
गए. इसीलिए ऐनी
को भी अपने
पति के साथ
सिबसी जाना पड़ा.
ऐनी और फ्रेंक
का वैवाहिक जीवन
कभी भी सुखमय
नहीं रहा. ऐनी
बच्चों और कुछ
सामाजिक विषयों पर कहानियां
लिखती थीं. लेकिन
उस समय महिला
का अपनी संपत्ति
पर अधिकार नहीं
होता था इसीलिए
वह अपनी मेहनत
से जो भी
धन अर्जित करतीं,
उनका पति सब
छीन लेता. इसके
बाद ऐनी ने
फार्म मजदूरों के
हितों की रक्षा
के लिए आवाज
उठानी शुरू की.
लेकिन फ्रेंक ने
उस समय भी
फार्म मालिकों का
ही साथ दिया.
इन सब घटनाओं
से आहत ऐनी
अपनी बेटी को लेकर
फ्रेंक से अलग
हो गईं. लेकिन
कुछ ही समय
बाद अपने संबंध
को एक आखिरी
मौका देने के
लिए ऐनी फिर
से फ्रेंक के
पास चली गईं.
लेकिन कुछ समय
बाद ही वह
फ्रेंक से हमेशा
के लिए अलग
हो गईं. उस
समय तलाक जैसी व्यवस्थाएं
मध्यम-वर्ग के
पहुंच में नहीं
थीं, इसीलिए फ्रेंक
और ऐनी ने
आपसी निर्णय के
आधार पर एक-दूसरे से अलग
होने का फैसला
कर लिया. शुरूआत
में वह अपने
दोनों
बच्चों
से संपर्क रखती
थीं, लेकिन फिर
वह अपनी बेटी
को लेकर चली
गईं. उन्हें अपने
पति से थोड़ा
बहुत भत्ता भी
प्राप्त हो जाता
था.
पति से अलग
होने के बाद
ऐनी बेसेंट ने
अपना जीवन समाज
सेवा में लगाने
का निश्चय किया.
उन्होंने महिलाओं के अधिकार,
धर्म-निर्पेक्षता और
मजदूरों के हितों
के लिए आवाज
उठानी शुरू की.
ऐनी बेसेंट बहुत
लंबे समय तक
अपने धर्म पर
अंध-विश्वास करती
रही थीं. इसका
सबसे बड़ा कारण
पारिवारिक माहौल भी था.
पादरी की पत्नी
होने के कारण
उन्हें धर्म का
पालन और उस
पर विश्वास रखना
पड़ता था. लेकिन
स्वतंत्र होने के
पश्चात उन्होंने अपने धर्म
और उसके आदर्शों
को ही संदेह
की दृष्टि से
देखना शुरू कर
दिया था. साथ
ही इंग्लैंड के
चर्च
द्वारा हो रहे
अत्याचारों के विरुद्ध
भी ऐनी बेसेंट
ने गहरी चोट
की. अपने लेखों
द्वारा वह चर्च
का आधिपत्य और
पारंपरिक मानसिकता को समाप्त
करने जैसी बातें
कहती थीं. उस
समय सार्वजनिक सभाएं,
मनोरंजन का एक
बेहतर माध्यम समझी
जाती थीं. जल्द
ही ऐनी बेसेंट
एक प्रमुख और
लोकप्रिय वक्ता के रूप
में अपनी पहचान
बनाने में सफल
रहीं. अपने भाषणों
के द्वारा वह
हमेशा ही सुधार
और स्वतंत्रता जैसे
विषयों को उठाती
थीं. ऐनी बेसेंट
राष्ट्रीय
सेक्यूलर
सोसाइटी
की प्रमुख सदस्य
थीं. इस सोसाइटी
के संस्थापक चार्ल्स ब्रेडलॉफ के साथ
ऐनी बेसेंट के
अच्छे संबंध थे.
दोनों साथ ही
कार्य करते थे.
1877 में जन्म-नियंत्रण
जैसे मुद्दों पर
प्रचार करने वाले
प्रचारक चार्ल्स नोल्टन की
किताब का प्रकाशन
कर ऐनी और
चार्ल्स ब्रेडलॉफ बहुत लोकप्रिय
हो गए थे.
इस पुस्तक का
प्रकाशन करने के
कारण उन दोनों
को जेल भी
जाना पड़ा था.
जेल जाने जैसे
अपराध के कारण
ऐनी के पति
फ्रेंक को बच्चों
को अपने पास
रखने का अधिकार
भी मिल गया
था. कुछ समय
बाद चार्ल्स ब्रेडलॉफ
ब्रिटिश संसद के
सदस्य बन गए
थे. उस समय
संसद के कार्यकलापों
में महिलाएं भाग
नहीं लेती थीं,
इसीलिए धीरे-धीरे
चार्ल्स और ऐनी
के संबंध भी
समाप्त हो गए.
ऐनी बेसेंट अपने
लिए एक ऐसे
कार्य की तलाश
कर रही थीं
जिसके द्वारा वह
अपनी क्षमता का
इस्तेमाल पीड़ितों के हितों
की रक्षा के
लिए कर सकें.
जल्द ही ऐनी
बेसेंट की मुलाकात
समान उद्देश्य वाले
फेबियन
सोसाइटी
के सदस्य और
उभरते हुए लेखक
जार्ज
बर्नार्ड
शॉ
से हुई. सोशल डेमोक्रेटिक फेडरेशन
की सदस्य बनने
के बाद ऐनी
बेसेंट ने अपना
एक स्वतंत्र समाचार
पत्र द लिंक
का प्रकाशन करना
प्रारंभ किया. इस समाचार
पत्र में उन्होंने
माचिस
की
फैक्टरी
में काम करने
वाली महिलाओं और
उनके स्वास्थ्य पर
पड़ते दुष्प्रभावों के
विषय में लिखना
शुरू किया. लेकिन
जल्द ही उन
तीन महिलाओं को
पकड़ लिया गया
जो ऐनी बेसेंट
को फैक्टरी से
जुड़ी सूचनाएं देती
थीं. ऐनी बेसेंट
ने माचिस की
फैक्टरी में काम
करने वाली महिलाओं
को संगठित कर
मैचगर्ल्स
यूनियन
का गठन किया.
तीन सप्ताह की
हड़ताल के बाद
उन तीन युवतियों
समेत सभी मजदूरों
को अपेक्षित रियायत
दी गई. 1889 में
ऐनी बेसेंट लंदन
स्कूल बोर्ड की
सदस्य बनीं. अपने
प्रयासों और सुझावों
के बल पर
ऐनी बेसेंट प्राथमिक
विद्यालयों में बच्चों
की स्वास्थ्य जांच
और कुपोषित बच्चों
को मुफ्त खाना
देने जैसे उद्देश्यों
को पूरा कर
पाईं. 1890 में ऐनी
बेसेंट हेलेना ब्लावत्सकी
द्वारा स्थापित थियोसोफिकल सोसाइटी,
जो हिंदू धर्म
और उसके आदर्शों
का प्रचार-प्रसार
करती हैं, की
सदस्या बन गईं.
भारत आने के
बाद भी ऐनी
बेसेंट महिला अधिकारों के
लिए लड़ती रहीं.
महिलाओं को वोट
जैसे अधिकारों की
मांग करते हुए
ऐनी बेसेंट लागातार
ब्रिटिश सरकार को पत्र
लिखती रहीं. भारत
में रहते हुए
ऐनी बेसेंट ने
स्वराज के लिए
चल रहे होम रूल आंदोलन
में भी महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई.
ऐनी बेसेंट का निधन
20 सितंबर, 1933 को मद्रास, भारत में
हुआ था.
ऐनी बेसेंट एक आत्म-निर्भर और समर्पित
महिला थीं. मृत्यु
के समय उनके
पास सिर्फ उनकी
बेटी
ही थी. महिलाओं
और शोषितों के
लिए वह आजीवन
संघर्षरत रहीं. उनकी मृत्यु
के पश्चात उनके
सहयोगियों ने हैप्पी
वैली स्कूल का
निर्माण किया, जिसका बाद
में नाम बदलकर
बेसेंट हिल स्कूल
किया गया.
No comments:
Post a Comment