Friday, 2 May 2014

Diamonds in Antarctic

       
 
Diamonds in Antarctic


  • Scientists say they have discovered compelling evidence that diamonds exist in the icy mountains of Antarctica.
  •  The researchers have identified a type of rock in the permanently frozen region that is known to contain the precious stones. However, recovering any Antarctic mineral resources for commercial purposes is currently forbidden.
  • Diamonds are formed from pure carbon under extreme heat and pressure at depths of about 150 km in the Earth’s crust. Volcanic eruptions bring the valuable crystals to the surface, usually preserved in another type of bluish rock called kimberlite.
  • The presence of kimberlite has been a clue to significant deposits of diamonds in several parts of the world, including Africa, Siberia and Australia.
  • Now researchers have, for the first time, found evidence of kimberlite in Antarctica.
  • Even if diamonds were plentiful in this inhospitable region, there are still some significant legal barriers to their extraction.
The Protocol on Environmental Protection to the Antarctic Treaty, added in 1991, explicitly bans any extraction activity relating to mineral resources, except for scientific purposes. However it is up for review in 2041 and could be subject to change.http://chandankumarsingh777.blogspot.in/

Kaziranga National Park

Kaziranga National Park

·         Kaziranga National Park is situated in the north eastern part of the country in the district of Golaghat and Nagoan in Assam.
·         A World Heritage Site, the park hosts two-thirds of the world's Great One-horned Rhinoceroses.
·          Kaziranga boasts the highest density of tigers among protected areas in the world and was declared a Tiger Reserve in 2006.
·         This park also is a domicile for large breeding inhabitants of Elephant, wild water buffaloes and swamp deer.
·         Declared as Important Bird Area by Birdlife International this national park is a home for great variety of inhabitant and migrating birds.

Located on the banks of river Brahmaputra, the sanctuary enjoys tropical vegetation and is marked by elephant grass, marshy lowlands and tropical moist broadleaf forests. The beautiful flora and diverse fauna adds to the scenic beauty of the park.

Nagarhole National Park

Nagarhole National Park

·        Nagarhole National Park also known as Rajiv Gandhi National Park is a national park located in Kodagu district and Mysore district in Karnataka state in South India.
·        It is part of the Nilgiri Biosphere Reserve.
·        The Western Ghats Nilgiri Sub-Cluster of 6,000 km2 including all of Nagarhole National Park, is under consideration by the UNESCO World Heritage Committee for selection as a World Heritage Site.
The park has rich forest cover, small streams, hills, valleys and waterfalls. The park has a healthy tiger-predator ratio, with many tigers, Indian bison and elephants.

Flying Fish

AMAZING ADAPTATIONS:- Flying Fish

When you’re a little fish in a big ocean, there’s not much you can do when faced with predators that are stronger, faster and bigger than you. But one fish has evolved to be equipped with a new way to escape from predators. The flying fish lives up to its name, with elongated fins that allow it to glide far out of reach of predators.
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With a predator closing in, the flying fish begins racing along just under the surface of the water with powerful flicks of its tail. Just before the predator is able to grab it, the flying fish has disappeared. From above the surface, the fish is now visible. Pectoral fins spread out like wings, it glides above the water. When it’s momentum begins to slow, the fish will glide back to the water’s surface and beat at it with its tail to propel itself upwards once more. Using these tactics, the flying fish is able to fly for up to 50m (164 feet).An ingenious escape mechanism for an otherwise easy meal.
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कहानी



आप लोगो से निवेदन हैं इस कहानी को पूरी पड़े ...............
सब्जीवाला लड़का.................
शाम का समय था। बच्चे सड़को पर खेल रहे थे। मैं अपने घर में बैठी थी और प्रसादजी की एक कहानी पढ़ रही थी कहानी खतम होने को आई थी कि मेरे कानों में आवाज़ पड़ी 'सब्जी ले लो सब्जी' यूं तो इस तरह की आवाजें तरकारी वाले प्राय: लागाते थे लेकिन ये आवाज़ कुछ अलग थी। मैं किताब छोड़कर नीचे गयी और इस आवाज़ के मालिक को तलाशने लगी मेरी नज़र सामने पड़ी एक छोटा बालक तरकारी का ठेला धकाते हुए मेरी ओर बढ़ रहा था। बीच बीच में चिल्लाता जाता 'सब्जी ले लो सब्जी' उसकी उमर बारह या तेरह बरस से ज्यादा लगती थी। लड़का देखने में बहुत सुन्दर था उसके चेहरे से मासूमियत टपक रही थी। उसे देखकर मेरे मन मैं अनगिनत सवाल नाग की तरह फन फैलाने लगे। वो अभी इतना छोटा था कि ठेलागाड़ी उससे धक भी पाती थी। उसे धकाने के लिए वो अपनी पूरी ताकत झोंक देता था। जब लड़के को ठेलागाड़ी मोड़नी होती थी तो वो उसे उठाने के लिए पूरा झुक जाता था और अपने शरीर को पूरी तरह झोक देता था।
वो मेरे पास गया और मेरे सामने ही आवाज़ लगाने लगा। उसके बदन पर एक बहुत ही पतली सी सूती की बुशर्ट पड़ी कुछ बटनों की जगह धागों ने ले रखी थी। जब वो ठेला धकाता था तो उसके कूल्हें पतलून के उधड़े हुए छेद में से झंकाते थे। जब मैंने उसके पैरों पर नज़र डाली तो देखा कि उसकी चप्पल बहुत ही छोटी थी। लड़के की एड़ी चप्प्ल से बाहर निकल जाती थी। उसकी चप्पल गल चुंकी थी और उनमें छेद पड़ गये थे। धूल मिट्टी और पानी उन छेदों से पार निकल जाता होगा। फिर वो ठेला धकाता हुआ मेरे सामने से निकल गया। कुछ समय तक तो मैं उसे देखती रही और फिर वो मेरी आंखों से ओझल हो गया। लेकिन वो लड़का मेरे मन में बस चुका था। दरअसल उस लड़के को देखकर मुझे भी अपने बचपन के दिन याद गये थे। उस लड़के में मुझे अपना बचपन नज़र आने लगा था अगले दिन मैं उसे लड़के का इंतज़ार करने लगी कुछ देर बाद वो आता दिखा और मेरे सामने आकर रूक गया।
उसने मेरी ओर देखा और मासूमियत भरी आवाज़ में पूछा, दीदी कुछ चाहिए क्या?
मुझे सब्ज़ी नहीं लेनी थी लेकिन फिर भी मैंने हां कर दी और मुझे उससे बात करने का मौका मिल गया।
मैंने पूछा, तुम इतनी कम उमर में काम क्यों करते हों?
लड़के ने सीधे जवाब दिया, मेरे बाबा मर गये इसलिए।
मैंने दुख कि भावना प्रकट करते हुए पूछा, तुम्हारी मां कहां है?
लड़का बोला, मेरी मां बीमार रहती है वो कुछ काम नहीं कर सकती। इसलिए मैं काम करता हूं।
इतना कहकर लड़का बोला दीदी अब मैं चलता हूं नहीं तो देर हो जाएगी। मैंने उससे बिना कोई मोल भाव किये ही कुछ सब्जियां ले ली और वो चला गया।
इस खेलने कूदने की उम्र में वो लड़का एक परिपक्व पुरूष बन चुका था और भला बुरा सब जानता था। जिस उम्र में बच्चे पांच किलो भार भी उठा पाते वो लड़का पचास किलो का ठेला धकाता था। उस बालक को आवश्यकता ने कितना मज़बूत और चतुर बना दिया था। मेरे मन में उस बालक के प्रति साहनुभूति ने जन्म ले लिया था और मैंने मन ही मन उसे अपना मित्र मान लिया था। मैं हर दिन उससे बिना मोल भाव के सब्जिया खरीदने लगी एक दिन मैं किसी काम से बाहर चली गयी और शाम को उस लड़के से मिल सकी जब मैं रात को घर लौट रही थी कि मेरी नज़र उस लड़के पर पड़ी वो सड़क के किनारे सिर झुकाकर दुखी अवस्था में बैठा था।
मैंने पूछा, क्या हुआ?
लड़के ने बहुत धीमी आवाज़ में बोला, दीदी आज सब्जी बिकी।
मैंने कहा, कोई बात नहीं कल बिक जाएगी।
लड़का बोला, अगर आज पैसे मिले तो मैं मां की दवा खरीद सकूगां।
मैंने इतना सुना और मैं अपने बटुए से सौ सौ के दो नोट निकालकर उसे देने लगी लड़का स्वभिमान के साथ बोला कि मैं भीख नहीं लेता दीदी उसके ये बोलते ही मुझे अपनी भूल का एहसास हो गया और मैं अपने घर चली गयी घर से होकर मैं वापस लड़के के पास गयी वो अभी भी वहीं बैठा था और प्रतीक्षा कर रहा था कि कोई उससे कुछ खरीद ले। मुझे फिर से देखकर लड़का खड़ा हो गया और मैंने कहा कि घर में सब्जी नहीं है कुछ दे दो। ये शब्द सुनते ही लड़के के चेहरे पर मुस्कान गई। मैंने एक बहुत बड़ा झोला निकाला और उसमें सब्जी भरने लगी कुछ ही समय में झोला भर गया। फिर मैंने लड़के से पूछा कितने पैसे हुए? वह कुछ बोल सका और उसकी आँखों से आँसू निकल आए। वो मेरी चाल को समझ गया था। उसे रोता देख मैंने उसे चुप किया और फिर पूछा कितने पैसे? इस बार लड़के ने कहा दीदी तीन सौ चालीस रूपये हुए। मैंने उसे पैसे दिए और कहा कि अब तुम्हारा थोड़ा ही माल बचा है। अब तुम घर जाओ। लड़का मुझे धन्यवाद बोलकर चला गया और मैं भी ख़ुशी ख़ुशी अपने घर गयी
इसी तरह समय बीतता गया और लड़का मुझसे घुल मिल गया। मैं उससे रोज सब्ज़ी ले लेती थी और मेरी मां मुझ पर चिल्लाती कि तुम्हें भी सब्ज़ी की दुकान लगानी है क्या? जो हर दिन झोला भर सब्ज़ी ले लेती हो। एक शाम मैं लड़के का इंतज़ार कर रही थी रात होने को आई थी। पर वो आया था। दूसरे दिन भी लड़का नहीं आया। इसी तरह चार दिन बीत गये। मेरे मन में अनगिनत बुरे विचार आने लगे। मैंने फैसला किया कि मैं लड़के को खोजूँगी लेकिन कैसे? मैंने तो उससे आज तक उसका नाम भी पूछा था और वो कंहा रहता है? ये पूछना तो मेरे लिये दूर की बात थी। फिर भी मैं निकल पड़ी उसे खोजने के लिए। पहले तो मैं उस नुक्कड़ पर गयी जंहा वो रात को खड़ा होता था। मैंने कुछ दूसरे सब्जी वालो से पूछा तो सब ने कहा कि वो तो तीन चार दिनों से आया ही नहीं। मैंने एक से पूछा कि वो कंहा रहता है? कुछ पता है? उसने में सिर हिलाया। मुझे निराशा हाथ लगी और मैं घर गयी मैं घर में सोच की मुद्रा में बैठी थी
मां ने पूछा, क्या हुआ?
मैंने कहा, कुछ नहीं।
मां ने कहा, मुझे पता है कि वो लड़का कंहा रहता है।
ये सुनते ही मैं उठ खड़ी हुई लेकिन मां को ये कैसा पता चला कि मैं उस लड़के के लिए परेशान हूं। महात्माओं ने सत्य ही कहा है कि मां सर्वोपरि है। वो पुत्री /पुत्र की आंखों में देखकर उसकी बात समझ सकती है। मैंने झट से मां से लड़के का पता लिया और लड़के की घर की ओर लपकी कुछ देर की मेहनत के बाद मैं उसके घर पहुँच ही गयी लड़के के पास घर के नाम पर मात्र टपरिया थी। घास फूंस से बनी हुई जैसी गॉवों में बनी होती है। लड़का मुझे बाहर ही दिख गया मुझे देखकर वो चौंक गया।
लड़का पूछता है, दीदी आप यंहा क्या कर कर रही है ?
मैंने उत्तर दिया, तुमसे मिलने आई हूं।
मैंने पूछा , तुम कुछ दिनों से आए क्यों नहीं?
लड़का बोला,दीदी मां बहुत बीमार है।
मैंने पूछा, कहां है तुम्हारी मां?
लड़का मुझे घर के भीतर ले गया। एक औरत मैली साड़ी में नीचे पड़ी थी उसकी साड़ी कई जगह से फटी हुई थी। कपडों के नाम पर वह चिथड़े लपटे थी। उसकी मां बहुत बीमार थी। कुछ बोल भी सकी। मैं बाहर निकल आई और मैंने लड़के से पूछा कि तुम्हारे पास पैसे हैं। लड़के ने हां में सिर हिलाया और फिर में घर गयी लड़के की ऐसी हालात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया और आधी रात तक उसके बारे में सोचती रही मुझे समझ गया था कि क्यों वो लड़का पढ़ाई और खेलकूद त्याग कर ठेला धकाता था।
लड़का कुछ दिन और आया समय गुजरता गया। इतवार के दिन दोपहर का समय था। गरमी इतनी भयंकर थी कि अगर आंटे की लोई बेलकर धूप में रख दे तो सिककर रोटी बन जाए। मुझे लड़के की आवाज़ सुनाई दी। मैं बाहर निकली ।गरमी बहुत तेज थी। मैंने पूछा तुम्हारी मां कैसी है? लड़का बोला अब तो ठीक है। मुझे ख़ुशी हुई। बातों ही बातों में मेरी नज़र उसके पैरों पर पड़ी वो नंगे पैर था।
मैंने गुस्से से पूछा, तुम्हारी चप्पल कहां है?
लड़का डरते हुए बोला, दीदी टूट गई।
मैंने कहा, तो तुम ऐसे ही गये।
वो बोला, तो और क्या करता दीदी घर में पैसे नहीं हैं।
इसके बाद मैं कुछ कह सकी
लड़का चला गया और नंगे पैर ही सब्जी बेचने लगा। कुछ दिन बीत गये लेकिन उसे ऐसे नंगे पैर देख मुझे चैन आता था। वो भरी दोपहरी नंगे पैर ठैला धकाता उसकी हालात के बारे में सोचकर मेरा मन विचलित हो जाता था। फिर मैंने सोचा कि क्यों मैं उसे एक जोड़ जूते ला दूं। लेकिन तभी मुझे याद आया कि जिस तरह उसने पैसे लेने से मना कर दिया था। यदि उसी प्रकार जूते लेने से भी कह दिया तो। बहुत चितंन के बाद आखिर मैंने उसके लिए जूते लाने का मन बना ही लिया। झटपट तैयार होकर मैं बाज़र पहुंची मैंने सोचा कि दौ सौ या तीन सौ रूपए के जूते लूगीं फिर मैंने सोचा कि ये जूते तो उस लड़के के पासे दौ महीने भी चलेगें। मैं पास ही जूतों के एक बहुत बड़े शोरूम में गयी मैंने सेल्समेन से कहा कि कोई ऐसा जूता दिखाओ जिसे पहनकर पहाड़ो पर चढा़ जा सके। उसने कहा आपके लिए। मैंने कहा नहीं बारह साल के लड़के के लिए। उसने तुरंत एक चमचमाता जूतों का जोड़ निकाला। ये बहुत मजबूत था और सब्ज़ीवाले लड़के के लिए एकदम सही था। मैंने वो जूता लिया और घर गयी
मैं शाम को लड़के की राह देखने लगी लेकिन लड़का रात होने पर भी नहीं आया। ऐसा तो नहीं कि आज वो पहले ही आकर चला गया हो। मैं तुंरत नुक्कड़ की ओर बड़ी लड़का वंहा बैठा हुआ था। मुझे देखकर सहसा ही खड़ा हो गया। उसके पैर में अभी भी चप्पल नहीं थी। जूते का थैला मेरे हाथ में लटका था और लड़का बराबर उसकी ओर देखे जा रहा था। मैं ये सोचने लगी कि लड़का खुद ही इस थैले के बारे में पूछेगा। लेकिन उसने एक बारगी भी थैले के बारे में पूछा। फिर मैंने खुद ही उससे कहा कि मैं तुम्हारे लिये कुछ लायी हूं। ये सुनते ही उसके मुख पर तिरस्कार की भावना गई। उसने हाथ हिलाकर कहा कि मैं आपसे कुछ लूंगा दीदी बहुत समझाने के बाद आखिरकार वो मान गया। मैंने फटाफट जूते का डब्बा खोलकर उसे दिखाया। पहले तो वो खुश हुआ लेकिन एकपल बाद ही उसकी आंख गीली हो गई। मेरे समझाने पर उसने रोना बंद कर दिया। वो मुझे धन्यवाद कहने लगा। उसने कम से कम मुझे दस बार धन्यवाद कहा होगा। उसने जूते ले लिए और मैं घर गया। मैं बहुत खुश थी कि अब उसे नंगे पैर घूमना पडे़गा। इसके बाद तीन दिन तक मैं किसी कारणवश लड़के से मिल सकी चौथे दिन लड़का भरी दोपहरी में चिल्लाता हुआ आया। मैं उससे मिलने बाहर निकली और सबसे पहले उसके पैरो को देखा। वो नंगे पैर था।
मैंने उससे पूछा, तुम्हारे जूते कहां है?
लड़का चुपचाप खड़ा रहा और कुछ बोला।
मैंने इस बार गुस्से से सवाल को दोहराया।
लड़का डरकर थोड़ा पीछे हट गया और नज़रे नीचे करके बोला।
दीदी , मैंने जूते बेच दिये।
ये सुनते ही मैं आग बबूला हो गयी और लड़के को दुनियाभर की बातें सुनाने लगी
मैंने पूछा, जूते क्यों बेचे?
लड़का बोला दीदी मेरी मां की साड़ी फट गई थी तो मैंने वो जूते बेचकर अपनी मां के लिए साड़ी खरीद ली। दीदी मैं कुछ दिन और नंगे पैर घूम सकता हूँ। लेकिन मां की फटी साड़ी देखकर मुझे अच्छा लगता था। लड़का कहने लगा मुझे जूतों की इतनी आवश्यकता थी। जितनी कि मां के बदन पर साड़ी की।
उसकी ये बातें सुनकर मेरे सारे गुस्से पर पानी फिर गया और उसके सामने मैं अपने आपको बहुत छोटा महसूस करने लगी उस लड़के के मुख से इतनी बड़ी बड़ी बातें सुन मैं अचंभित हो गयी मुझे उस लड़के पर गर्व महसूस होने लगा। मैंने देखा कि लड़का खुश था। उसके चेहरे पर मुस्कान थी जो मैंने आज से पहले कभी देखी थी। वो नंगे पैर ही ठैला धकाता हुआ चला गया। मैंने जाते जाते उससे पूछा बेटा तुम्हरा नाम क्या है? उसने हंसते हुए कहा संजय